लखनऊ, जागरण संवाददाता। काकोरी के मलाहां गांव के किसान गिरीश द्विवेदी की बेटी सरिता (22) ने आरक्षण व्यवस्था से क्षुब्ध होकर बृहस्पतिवार को फांसी लगा ली। उसका शव पेड़ से लटका मिला। सरिता ने पुलिस भर्ती बोर्ड 2014-15 की शारीरिक परीक्षा में सफलता हासिल की थी, लेकिन उसका चयन नहीं हो सका। घरवालों के मुताबिक सरिता पुलिस भर्ती घोटाले से परेशान थी। पुलिस ने सरिता के पास से सुसाइड नोट भी बरामद किया है। नोट में सरिता ने उत्तर प्रदेश सरकार व आरक्षण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
सरिता ने नोट में लिखा है- ‘सामान्य वर्ग में जन्म लेने का यह अभिशाप या सजा है। सभी जगह आरक्षण, अभिशाप। यदि हम कोई फार्म भरते हैं तो उसके पैसे कहां से लाएं। पापा, आपके पास भी तो इतनी ताकत नहीं रही।’
एसओ काकोरी अनिल सिंह के मुताबिक घरवालों ने पुलिस को अभी सुसाइड नोट की फोटो कॉपी ही दी है। सुसाइड नोट करीब नौ पन्ने का है। पुलिस का कहना है कि असल सुसाइड नोट व पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने पर आगे की कार्रवाई होगी।
एनसीसी कैडेट सरिता एमए कर चुकी थी। बृहस्पतिवार सुबह सरिता के परिवारीजन घर से कुछ दूर ट्यूबवेल के पास भूसा ढोने गए थे। सरिता घरवालों का खाना लेकर वहां गई थी। कुछ देर तक काम में हाथ बंटाने के बाद वह वहां से चली गई। बाद में उसका शव पेड़ से लटका मिला। काकोरी पुलिस ने शव को उतारने का प्रयास किया, लेकिन घरवालों ने उन्हें रोक दिया। घरवाले व ग्रामीण पहले उच्चाधिकारियों को मौके पर बुलाने की मांग करने लगे। उनका कहना था कि व्यवस्था व भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि उनकी बेटी की तरह किसी अन्य युवती को ऐसा कदम न उठाना पड़े। बाद में एसडीएम मलिहाबाद नंदलाल कुमार व डीएसपी मलिहाबाद एएन त्रिपाठी मौके पर पहुंचे और घरवालों को समझाकर शव को उतरवाया।
पापा मैंने हार नहीं मानी, पर…
लखनऊ, जागरण संवाददाता। सरिता बहादुर थी पर व्यवस्था की जड़ता से लड़ते-लड़ते वह थक गई। सुसाइड नोट में उसने कहीं इस सिस्टम के प्रति आक्रोश तो कहीं परिस्थितियों से लड़ पाने की विवशता का जिक्र किया है…।
* मम्मी मेरा सपना था वर्दी पहनने व इंसाफ की लड़ाई लडऩे का। इसलिए मैं दौड़-दौड़कर पेट की मरीज बन गई। 100 नंबर दौड़ में पाने के बाद मैं और आप लोग बहुत खुश थे…।
* पापा मैंने हार नहीं मानी क्योंकि हमें सामान्य जाति के होने का अभिशाप था। कहीं लंबाई, कहीं पढ़ाई, कहीं आरक्षण तो क्या करें जीकर। क्योंकि ज्यादा पढ़ाई या प्रोफेशनल कोर्स करना या कराना हम लोगों की क्षमता से बाहर है।
* पापा मैं तो जा रही। पापा इन हत्यारों से ये पूछना कि जब सामान्य वालों के लिए कहीं जगह नहीं है तो हर हास्पिटल में ये बोर्ड न लगवा दें कि सामान्य वर्ग के स्त्री के शिशु जन्म लेने से पहले ही मार डालें। …अपना-अपना जातिवाद फैला लें। समाज की क्या स्थिति होती जा रही है। लड़कियों के 20-20 टुकड़े करके फेंके जा रहे हैं।
* पापा, लोग लड़कों को पढऩे के लिए भेजते हैं पर आपने भरोसे के साथ भेजा। मैं बार-बार कह रही थी मैं हार नहीं मानूंगी। बस, आरक्षण अभिशाप के कारण मैं जीना नहीं चाहती।
* मम्मी इतना जरूर पूछना कि जब मेरिट रिलीज हुई थी तब जनरल लड़की की कोई मेरिट नहीं बनी।
* जय हिंदू, जय भारत। जय धरती माता की मुङो गोद में स्थान दो। जय भारत माता की। ..हम पुलिस, हम पुलिस, हम पुलिस, ..खत्म इंतजार।
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